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Sunday, August 14, 2011

भ्रष्टाचार …चीन में सजा… भारत में मज़ा

चीन में गत मंगलवार को दो भ्रष्ट राजनेताओं को फाँसी पर चढ़ा दिया गया – ये थे पूर्व मेयर जो रिश्वत लेने, हेराफेरी और पद के दुर्रपयोग के दोषी पाए गए. १२ मई को मृत्यु दंड की सजा सुनाई गई और महज़ २ महीने नौं दिन के बाद लटका दिया गया. भ्रष्टाचार के प्रति अपनी ‘ जीरो टालरेंस ‘ निति की बदौलत आज चीन विकास स्तर में भारत से मीलों आगे निकल गया है. ऐसी अनेकों उदाहरण चीन में देखने को मिलती हैं जब भ्रष्टाचार में लिप्त राजनेताओं, कर्मचारियों व् अन्य नागरिकों को सूली पर लटका दिया गया.
हमारे यहाँ ऐसी एक भी उदहारण ‘ ढूँढते रह जाओगे ‘ सूली तो क्या किसी को मामूली सजा भी हुई हो. आज हम विश्व के भ्रष्ट देशों के सिरमौर बन कर उभरे हैं और शीर्ष स्थान तक पहुँचाने के लिए चंद पायदान की दरकार है. भ्रष्टाचार के कीर्तिमान बनाने में हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री महा पंडित श्री श्री जवाहर लाल जी नेहरु का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. पंडित जी द्वारा रोपे और सिंचित किये गए भ्रष्टाचार के बूटे आज वट वृक्ष बन उभरे हैं .पंडित जी के कार्यकाल में पहला घोटाला जीप घोटाला था जिसे उनके चहेते कृष्णा मेनन ने सरअंजाम दिया था.
आजाद भारत का यह पहला घोटाला था और वह भी देश की सुरक्षा से सम्बंधित ! नाम – मात्र के विरोधी सांसदों ने यह मामला जोर शोर से संसद में उठाया… नेहरु जी बुरा मान गए – कृष्णा मेनन नेहरु जी के ख़ास राजदार जो ठहरे ? मेनन को सजा तो क्या ! इनाम सवरूप रक्षा मंत्री बना दिया ! नतीजा ६२ के युद्ध में हम चीन के हाथों पराजित हुए और हजारों मील अपनी भूमि से हाथ धो बैठे. नेहरु जी सदमे से उबर न सके और अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए.
दूसरा भ्रष्टाचार भी नेहरु जी की ही देन था जब पंजाब के वृष्ट नागरिक व् राजनेता नेहरु जी से मिले और ततकालीन मुख्यमंत्री परताप सिंह कैरो की लूट खसूट की शिकायत की. नेहरु जी ने कैरो के खिलाफ कार्रवाही तो क्या करनी थी उल्टा ‘जुमला’ दे मारा ‘ अरे भई कैरो यह लूट का पैसा कोई बाहर तो नहीं ले गया – देश में ही लगा रहा है. भ्रष्टाचार के प्रति ‘सब चलता है’ की इस नीति के चलते और नेहरु जी की नादानी के परिणाम स्वरुप आज , स्विस बैंकों में भ्रष्टाचार से लूटा गया – भारत का काला धन १५०० बिलियन डालर को पार कर गया है.
बाबा राम देव जी ने जब भारत के विदेशी बैंकों में पड़े पैसे को राष्ट्रिय सम्पति घोषित करने और काला धन विदेशी बैंको में जमा करवाने वालों के खिलाफ मृत्यु दंड की मांग में राम लीला मैदान में लाखों समर्थकों के साथ अहिंसक व् शांतमयी धरना दिया तो हमारी सेकुलर शैतानों की सर्कार ने आन्दोलनकारियों को पीट पीट कर भगाया और भगा भगा कर पीटा. जाहिर है सरकार में बैठे राजनेता नहीं चाहते कि लोग स्विस बैंको में पड़े पैसे पर हो हल्ला करे क्योंकि अधिकाँश पैसा पिछले ६४ साल से सत्ता सुख भोग रहे राजनेताओं और उनके कुनबे का है. उल्टा आन्दोलनकारी समाजसेवकों को झूठे मामलों में प्रताड़ित करने का खेल खेला जा रहा है. मिडिया को इन समाजसेवकों के खिलाफ प्रचार के लिए करोड़ों रूपए की ‘विज्ञापन सुपारी’ दी जा रही है. ताकि आम लोगो में भ्रम फैलाया जाए. एक सर्वे के अनुसार देश की ५४ % जनता भ्रष्टाचार के प्रति संवेदनहीन है. एक ही परिवार और पार्टी की सरकार की पिछले ६४ साल में देश
को भ्रष्टाचार के गर्त में धकेलने कि यह सबसे बड़ी साजिश है.
तोहमतें आयेंगी नादिरशाह पर – आप दिल्ली रोज़ ही लूटा करो .
नेहरु का बोया भ्रष्ट बीज आज मनमोहन के सर पर वट वृक्ष बना इतरा रहा है – महज़ ६८ करोड़ के बोफोर्स घोटाले पर केंद्र की सरकार औंधे मूंह गिरी थी .. आज १.७६ लाख करोड़ के २जी घोटाले पर देश में शमशान सी ख़ामोशी है. क्योंकि ऐसे महां घोटाले तो अब रोज़ रोज़ उजागर हो रहे हैं. चोरों का सरदार सिंह फिर भी ईमानदार है ? न्यायालयों की सक्रियता के चलते अनेक मंत्री और संत्री तिहार जेल में बंद हैं. सिलसिला अगर यूँ ही जारी रहा तो एक दिन मंत्री मंडल की बैठक भी तिहार जेल में होगी और हमारे चोरों के सरदार और फिर भी ईमानदार प्रधानमंत्री को भी ‘ ति… हा … र … ‘ तो जाना ही पड़ेगा.....

Thursday, March 31, 2011

कांग्रेस और रामदेव आमने-सामने

भारत की राजनीति का यह अजीबोग़रीब दौर है. संत राजनीति कर रहे हैं और राजनीतिक दल संतों की तरह बर्ताव कर रहे हैं. संत से मतलब मौन धारण करना है. ऐसा पहली बार देखा जा रहा है कि किसी पार्टी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं, देश भर में रैलियां करके राजनेताओं के ख़िला़फ आग उगली जा रही है और देश चलाने वाली पार्टी चुप्पी साधकर सब कुछ सुन कर रही है. बीती 27 फरवरी को दिल्ली का रामलीला मैदान खचाखच भरा था. पूरे देश भर से लोग भ्रष्टाचार के ख़िला़फ एक रैली में शामिल होने आए थे. दर्जनों टीवी चैनलों और अख़बारों के संवाददाताओं की भरमार थी. यह रैली योग गुरु बाबा रामदेव ने बुलाई थी. मंच पर हिंदू थे, मुसलमान थे, सिख थे, ईसाई थे. अन्ना हज़ारे, किरण बेदी एवं केजरीवाल जैसे लोग भी थे, जो हिंदुस्तान में भ्रष्टाचार के ख़िला़फ आंदोलन के चेहरे हैं. कुछ ऐसे चेहरे भी थे, जो अपने बयानों से सनसनी फैलाने में माहिर हैं. इतनी बड़ी रैली, इतने बड़े-बड़े लोग भ्रष्टाचार के ख़िला़फ बाबा रामदेव की मुहिम में शामिल हुए. सबको बोलने का मौक़ा दिया गया. हैरानी की बात यह है कि इस विशाल रैली में क्या हुआ, यह मीडिया से पूरी तरह ग़ायब रहा. बाबा रामदेव की वजह से यह रैली एक धार्मिक चैनल आस्था पर दिन भर लाइव दिखाई गई. पहला सवाल तो यही उठता है कि मीडिया ने इस रैली और इसमें लगे आरोपों को महत्व क्यों नहीं दिया.
इस रैली में सबसे सनसनीख़ेज़ भाषण पूर्व इनकम टैक्स कमिश्नर विश्वबंधु गुप्ता ने दिया. उन्होंने वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को अपशब्द कहे, कांग्रेस के भ्रष्ट नेताओं का नाम लिया और सोनिया गांधी एवं उनके राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल पर तीखी टिप्पणी की. विश्वबंधु गुप्ता ने सबसे पहला प्रहार प्रणव मुखर्जी पर किया. उन्होंने कहा- मैं आपको बताता हूं कि पिछले छह सालों में किस तरह देश से धोखा किया गया. यह ऐसी कहानी है, जो आपको चौंका देगी. मैं प्रणव मुखर्जी से मिला, जो कि भारत के वित्त मंत्री हैं. मैंने कहा, मिनिस्टर साहब, स्विट्‌जरलैंड में हमारे लोगों का 70 लाख करोड़ रुपया पड़ा हुआ है. आप उसको लाने के लिए क़ानून क्यों नहीं लाते. बोले (प्रणव मुखर्जी), विश्वबंधु, तुमको मालूम नहीं है कि स्विट्जरलैंड के भी क़ानून हैं. उस क़ानून के अंदर न वे नाम बताएंगे, न पैसे देंगे. मैं सुनता रहा. एक हिजड़े की बात सुनता रहा. मन में आया कि मेरे मां-बाप अंग्रेज़ों से आज़ादी की लड़ाई में जेल गए थे…यह हिजड़ा यहां बैठा क्या कर रहा है. न स़िर्फ वह हिजड़ा है, बल्कि वह झूठा भी है. हर बार पार्लियामेंट में झूठ बोलता है.
प्रणव मुखर्जी पर विश्वबंधु का कोई आरोप नहीं है, कोई खुलासा नहीं किया, फिर भी उन्हें अपशब्द कहे. बाबा रामदेव वहां बैठे मुस्करा रहे थे और लोग तालियां बजा रहे थे. हालांकि उन्होंने केंद्र सरकार पर एक ऐसा आरोप लगाया, जिससे जनता सन्न रह गई. उन्होंने कहा- एक बात और करना चाहता हूं. क्वात्रोकी छुपे बैठे हैं. उनका एक बेटा है मलिस्मा या मलुस्मा. सारे काग़ज़ात मेरे पास हैं. मैं कमिश्नर रहा हूं, बिना काग़ज़ात के कुछ भी नहीं बोलता. मलुस्मा ने 2005 में अंडमान निकोबार में तेल की खुदाई का ठेका लिया. इस सरकार के अंदर लिया. जिस क्वात्रोकी को स्वामी जी कहते हैं ढू़ंढो, इटली की सबसे बड़ी रैकेटियर कंपनी ईएनआई इंडिया लिमिटेड के नाम से खोला गया उसके बेटे का दफ्तर मेरिडियन होटल के अंदर है. चलो वहीं चलकर उसे तोड़ देते हैं. यह मामला अभी तक न मीडिया की नज़र में और न ही संसद की नज़र में आया है. यह आरोप सचमुच चौंकाने वाला है. अगर विश्वबंधु गुप्ता के इस आरोप में सच्चाई है तो इसकी जांच हो और अगर यह झूठ है तो केंद्र सरकार और कांग्रेस पार्टी को उनके ख़िला़फ कार्रवाई करनी चाहिए.
मज़े की बात यह है कि इस भाषण में वह यह दावा भी कर रहे थे कि आज का भाषण प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी सुनेंगे, सारे भ्रष्ट नेता सुनेंगे. उन्हें पता है कि विश्वबंधु गुप्ता क्या है. आज मैं अपनी बात और आपकी बात वहां पहुंचाने के लिए एक-एक चीज़ का ख़ुलासा कर दूंगा. इसके बाद उन्होंने स्विस बैंक के बारे में एक और जानकारी दी. उन्होंने कहा-2005 में स्विस बैंकर्स एसोसिएशन ने एक चिट्ठी लिखी सरकार को कि हम आपके देश में आना चाहते हैं. 2007 में वही बैंकर्स, जिनके पास सत्तर लाख करोड़ रखा हुआ है, वे दिल्ली आए. उनकी फोटो हैं हमारे पास. उन्होंने कहा कि हमें हिंदुस्तान में स्विट्जरलैंड के बैंक खोलने दिए जाएं. हमको दुनिया का लूटा हुआ पैसा बंबई की स्टॉक मार्केट में लगाने दिया जाए. शर्म की बात है…चिदंबरम साहब से मैं जवाब मांगता हूं. 2007 में स्विस बैंक को आज़ादी दी गई स्टॉक मार्केट में सट्टा खेलने की. 2005 में भारत में स्विट्जरलैंड के चार और इटली के आठ बैंक खोले गए. ये इटली वे बैंक हैं, जिनमें घाटा चल रहा है और जिन्हें वहां का मा़फिया चला रहा है. इससे आगे जाने की मुझे ज़रूरत नहीं है. बाबा को मैंने ही लिस्ट दी थी आठ बैंकों की.
स्विस और इटली के बैंकों की बात यहीं ख़त्म नहीं हुई. विश्वबंधु ने इन सारी गड़बड़ियों के लिए सोनिया गांधी को ज़िम्मेदार बता दिया. सोनिया गांधी के ख़िला़फ सार्वजनिक तौर पर इतना बड़ा भ्रष्टाचार का इल्ज़ाम किसी ने नहीं लगाया. विश्वबंधु ने कहा- मेरी बहन सोनिया गांधी, अगर देश को लूटने आई हो, तो लाल क़िले से ऐलान कर दो. अगर हम में देश का ख़ून है तो हम जीतेंगे और अगर तुम में इटली का ख़ून और उसका गर्व है तो तुम जीत जाना. एक बार यह आर-पार की लड़ाई हो ही जाए तो अच्छा है. बाबा रामदेव के स्वाभिमान आंदोलन के मंच से सोनिया गांधी पर ऐसे आरोप लगाए जा रहे हैं. बाबा रामदेव कहते हैं कि भ्रष्टाचार का उनका आंदोलन किसी पार्टी विशेष या व्यक्ति विशेष के ख़िला़फ नहीं है, लेकिन रैली में जो हुआ, उससे तो यही लगता है कि बाबा रामदेव ने कांग्रेस के ख़िला़फ यह अभियान छेड़ा है.
हसन अली के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार को फटकार लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हसन अली के ख़िला़फ अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई. हैरानी की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के पहले ही विश्वबंधु गुप्ता ने कांग्रेस और हसन अली के रिश्तों के बारे में बता दिया था. इस रैली में उन्होंने यह दावा किया- अब आपको हसन अली का कुछ ख़ुलासा करता हूं. इनकम टैक्स डिपार्टमेंट जिसमें मैं कमिश्नर था, उसने पुणे में छापा मारा. छापे में एक लैपटॉप पकड़ा गया, जिसमें सत्रह नाम थे. एक नाम पढ़ा जा सकता था अदनान खशोगी का. बाक़ी सोलह नाम कोडेड थे, समझ नहीं आ रहे थे. हमारे अ़फसर थक गए. उन्होंने कहा कि साहब, ये नाम नहीं पता लग रहे. एक ईमानदार अ़फसर ने स्विट्‌जरलैंड को चिट्ठी लिखी कि साहब इनके नाम बता दीजिए. उन्होंने कहा कि हम ये नाम आपको देने के लिए तैयार हैं, अगर आपके वित्तमंत्री हमको चिट्ठी लिखें. लेकिन इस चिदंबरम का कैरेक्टर देखिए आप, उस आदमी को इस्ती़फा देना पड़ेगा. हम आपको उसका कैरेक्टर बताते हैं. चिदंबरम ने क्या किया, सत्रह आदमियों की लिस्ट देखी. मुझे कारण मालूम नहीं कि उन्होंने चिट्ठी क्यों लिखी, मगर लगता है उनके मन में घूस खाने का लालच आया. उन्होंने सोचा कि ये पचास हज़ार करोड़ की मोटी-मोटी बिल्लियां आ गई हैं, नाम लाऊंगा, इनको ब्लैकमेल करूंगा और घूस खाऊंगा. इतिहास भी आदमियों से क्या-क्या करा देता है. चिट्ठी लिखी गई, हसन अली का अकाउंट निकला, सत्रह नाम आए, लेकिन चिदंबरम की क़िस्मत फूट गई. उसमें तीन राजनेताओं के भी नाम थे. आपको नाम भी बता देता हूं, विलासराव देशमुख का नाम था, जो कैबिनेट मिनिस्टर है. उसके बाद वह घोड़े बेचने वाला आदमी, जिसने 100 लाख करोड़ रुपया जमा कराया. फिर क्या हुआ. यह तीन साल पहले की बात है. आज भी हसन अली खुलेआम घूम रहा है. आज दूसरे का भी नाम सुन लो, जो विलासराव देशमुख के साथ हसन अली से मिलने गया था पुणे में. दूसरे आदमी का नाम है अहमद पटेल. सोनिया गांधी जी सुन लो…बॉम्बे पुलिस के पास उन तीनों राजनेताओं की वीडियो फुटेज है, जो रात को पुणे में मिलते थे.
बात हसन अली से सोनिया गांधी तक पहुंच गई. विश्वबंधु ने आगे कहा- अहमद पटेल यूपीए की चेयरमैन के राजनैतिक सलाहकार हैं. मैं नहीं जानता कि वह कौन सी राजनीति समझाते हैं, क्योंकि उनकी मीटिंग सोनिया से रोज़ रात को 12 से 2 बजे के बीच होती है. भारत के इतिहास में पहली बार मैंने देश के राजनेताओं को रात-रात भर 12 से 3 बजे तक मिलते देखा है. अरे उल्लू जागते हैं उस समय तो! सोनिया गांधी जी यह बताएं या अहमद पटेल बताएं कि हफ्ते में 2-3 बार जब सोनिया का फोन आता था, तो अहमद पटेल गाड़ियां बदल-बदल कर छुपकर उनसे मिलने 10 जनपथ क्यों जाते थे, क्या होता था, क्या हिसाब तय होता था? क्या पैसे की बातें होती थीं? आज यह देश एक डिपार्टमेंटल स्टोर है. इस सरकार ने वाइस चांसलरों की पोस्ट बेचीं. राज्यसभा की सीटें बिक रही हैं पैंतीस करोड़ की. हर चीज़ बिकी. और बिकते-बिकते मामला यहां तक आ गया कि इस मुल्क की ज़मीन तक सरकार ने बेची. हम जानते हैं कि हसन अली दाऊद का आदमी है. 2-जी मामले में आपने शाहिद बलवा का नाम सुना. शाहिद बलवा एक बिल्डर हैं, जो कुछ दिन पहले सड़क पर चलते थे. शाहिद बलवा के यहां जब छापा पड़ा तो उनके पास शरद पवार के काग़ज़ मिले हज़ारों करोड़ के, अनर्थ हुआ. मुझको तो यह भी समझ में नहीं आता कि इस देश के मंत्रिमंडल में कोई ईमानदार मंत्री है भी कि नहीं.
इस रैली में भारतीय जनता पार्टी के नेता एवं देश के जाने-माने वकील राम जेठमलानी भी थे. उन्होंने भी गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगाए. उन्होंने कहा- स्विट्ज़रलैंड के एक अख़बार, जिसका नाम था इलस्ट्रेटेड, ने दुनिया के 14 बड़े गुनहगारों और डाकुओं का ज़िक्र उनकी तस्वीरों के साथ अपने एक पर्चे में किया था. उन 14 गुंडों और बदमाशों के बीच में एक हिंदुस्तानी भी था. वह हिंदुस्तानी हमारे देश का पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी था. उसकी तस्वीर के बाज़ू में कई मिलियन डॉलर लिखे हुए थे, जो स्विट्ज़रलैंड के बैंकों में जमा थे. अब मैं 1994 की बात करता हूं. रशिया में एक किताब छपी, जिसका नाम है अ स्टेट विद इन अ स्टेट. उसमें लिखा है कि राहुल गांधी को हमारी केजीबी से, जो उनकी सीक्रेट पुलिस है, हर साल अच्छा पैसा मिल रहा है और राहुल गांधी हमारी शुक्रगुज़ारी करता रहता है और सोचता है कि जो पैसा मैं रशिया से लेता हूं, वह हिंदुस्तान की सेवा में लगाता हूं. हिंदुस्तान के प्रेस ने यहां की जनता को यह बात कभी नहीं बताई. यह बात छिपाई गई, क्यों? क्या भ्रष्टाचार हमारे प्रेस को भी ख़राब कर चुका है?
बाबा रामदेव सबसे आख़िरी में बोले. संत नहीं, एक राजनेता की तरह बोले. अपने भाषण से उन्होंने सभी वक्ताओं के भाषण को एक दिशा दी. भारत स्वाभिमान आंदोलन के दुश्मन कौन हैं, मित्र कौन, इसे भी स़फाई से बताया. उन्होंने कहा- महात्मा गांधी का नाम और तो देश में कहीं दिया नहीं, बहुत दबाव देने के बाद नरेगा महात्मा गांधी के नाम किया गया. बाक़ी तो आधी से ज्यादा योजनाओं और संस्थानों के नाम एक ही परिवार के नामों पर हैं. क्या स़िर्फ एक ही परिवार ने शहादत दी है, आधी से ज्यादा योजनाओं का नाम एक ही परिवार के नाम कैसे कर दिया गया… वर्तमान में जो केंद्र सरकार है, इसका क़रीब 55 साल देश में राज रहा है…इस दौरान 400 लाख करोड़ लूटे गए हैं हिंदुस्तान के. माना कि हम दूसरी पार्टियों को क्लीन चिट नहीं दे रहे हैं, लेकिन यदि दूसरे दोषी हैं एक-दो प्रतिशत, तो 99 प्रतिशत दोषी हैं जो वर्तमान में बैठे हैं. वैसे भी विश्वबंधु गुप्ता ने इस मंच से पहले ही ऐलान कर दिया था- देश में भ्रष्टाचार के ख़िला़फ ऐसा महाभारत होगा, जो हमारी नई पीढ़ी देखेगी और नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक से लेकर दस जनपथ तक की ईंट से ईंट तोड़ दी जाएगी.
बाबा रामदेव ने काले धन की बात उठाई और सीधा सोनिया गांधी को निशाने पर लिया. उन्होंने विश्वबंधु गुप्ता की बात को आगे बढ़ाया और कहा- पहले चोरी करके (काला धन) स्विट्‌ज़रलैंड भेजते थे, अब इन बैंकों को भारत ही बुला लिया. स्विट्‌ज़रलैंड के चार बैंक यहीं बुला लिए. उन्होंने कहा कि पहले हज़ार करोड़ लूटते थे, अब लाखों करोड़ लूट रहे हैं. स्विट्‌ज़रलैंड ले जाने में दिक्क़त होती है. स्विट्‌ज़रलैंड के बुलाए तो बुलाए, जब मैंने कहा कि आठ बैंक इटली के बुलाए तो मिर्ची लग गई. अरे, इटली के आठ बैंक भारत में क्या कर रहे हैं? बाबा रामदेव गांधी परिवार पर हमला करने से नहीं चूकते. कभी सीधे-सीधे तो कभी इशारे में. बीच-बीच में उन्होंने नेहरू पर भी छींटाकशी की, कहा, मैं अभी तेजपुर से आया हूं जिसे एक प्रधानमंत्री ने चीन को सौंप दिया था. इस रैली में उन्होंने उस मुद्दे को फिर उठाया, जिसमें यह आरोप लगाया- एक कांग्रेसी सांसद ने मुझे अपशब्द कहे. कोई संन्यासी जिन्हें ब्लडी इंडियन और कुत्ता नज़र आता है, उनके दिमाग़ का इलाज करना चाहिए. दु:ख इस बात का है कि ऐसे लोगों को हम संसद में कैसे बैठा देते हैं. सरकार और वह पार्टी इस पाप के लिए क्षमा मांगना तो दूर, उल्टा हिसाब मांगती है. अब तो देश की जनता हिसाब मांगेगी कि तुमने कितना देश को लूटा है. बाबा के निशाने पर केंद्र सरकार तो है ही, साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री को भी कठघरे में खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा- आज तो प्रधानमंत्री ने समय नहीं दिया, मैं तो समय मांगता रहूंगा. अगर समय नहीं दिया तो उनका भी समय पूरा हो जाएगा. वह सलामत रहें, क्योंकि प्रधानमंत्री जी बेईमान लोगों से घिरे ईमानदार व्यक्ति हैं. आज तक की सबसे बेईमान सरकार के सबसे ईमानदार प्रधानमंत्री का तमग़ा उन्हें मिला है.
किसी भी रैली का मक़सद देश और समाज में संदेश देना होता है. कुछ रैलियां ऐसी होती हैं, जिनमें मजमा तो लगता है, हज़ारों-लाखों लोग जमा होते हैं, लेकिन वे कोई संदेश नहीं पहुंचा पातीं. वहीं कुछ रैलियां ऐसी होती हैं, जो छोटी होती हैं, जिनमें ज्यादा लोग नहीं जमा होते, लेकिन उनसे देश और समाज में संदेश जाता है. यह रैली संदेश देने में कामयाब नहीं हुई. खानापूर्ति के लिए अख़बारों ने रैली की ख़बर छाप तो दी, लेकिन मुद्दा गुम हो गया. योग गुरु बाबा रामदेव को भी उलझन हुई होगी कि इतने सारे अख़बारों और उनके सभी चहेते टीवी चैनलों से रैली का संदेश क्यों ग़ायब हो गया. क्या कांग्रेस पार्टी और सरकार ने अख़बारों-चैनलों पर दबाव बना लिया या फिर इस रैली में ही कुछ ऐसी बातें कही गईं, आरोप लगाए गए कि मीडिया ने इससे किनारा करना ही मुनासिब समझा.
बाबा रामदेव ने जबसे राजनीतिक दल बनाने की घोषणा की है, तबसे उनकी रैलियों में एक बदलाव दिख रहा है. भ्रष्टाचार के ख़िला़फ आंदोलन का आह्वान करने वाले बाबा रामदेव की पूरी मुहिम कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार पर केंद्रित होती जा रही है. इस रैली में गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी के ख़िला़फ वक्ताओं ने जमकर आग उगली, आरोप लगाए. बाबा रामदेव के सामने भाषा की सीमा लांघी गई. तालियों की गड़गड़ाहट के बीच राजनीतिक और सामाजिक गरिमा दब सी गई. हालांकि यह सवाल भी उठता है कि संतों के इस आंदोलन में ख़राब भाषा का क्या औचित्य है. अगर बाबा रामदेव की बातों में सत्यता है, अगर उनकी लड़ाई स़िर्फ भ्रष्टाचार से है तो जनता वैसे ही खिंची चली आएगी.
हमने कई नेताओं से इन आरोपों के बारे में बात की. कांग्रेस के नेताओं को अब समझ में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए. चुप रहा जाए या फिर बोला जाए. बाबा के ख़िला़फ बोलने की किसी की हिम्मत नहीं हो रही है. जो हिम्मत करना भी चाहते हैं, उन्हें चुप रहने के लिए कहा गया है. सवाल यह है कि क्या देश में मंत्रियों, सरकार, राजनीतिक दलों और उनके नेतृत्व पर बिना सबूत, बिना तथ्य, बिना जानकारी के आरोप लगाया जा सकता है. अगर इन आरोपों के सबूत हैं तो बाबा रामदेव और उनके साथियों को उन्हें देश की जनता के सामने पेश करना चाहिए. हम इस मामले को इसलिए उठा रहे हैं कि बाबा रामदेव के मंच से किन्हीं सामान्य लोगों पर आरोप नहीं लगाया गया है. बाबा रामदेव और उनके अभियान में शामिल लोग देश चलाने वाले मंत्रियों और सरकार चलाने वाली पार्टी और उसके नेतृत्व पर आरोप लगा रहे हैं. जनता को सच जानने का अधिकार है. अगर कांग्रेस पार्टी और सरकार इन आरोपों का जवाब नहीं देती है तो देश की जनता मान लेगी कि इन आरोपों में सच्चाई है.........
 ललित सिंह (अखिल भारतीय नौजवान सभा) 

Saturday, January 22, 2011

आजाद भारत के सबसे बेबस प्रधानमंत्री साबित हुए मनमोहन

आजाद भारत के सबसे बेबस प्रधानमंत्री साबित हुए मनमोहन





भारत गणराज्य भ्रष्टाचार, अनाचार, दुराचार की आग में जल रहा है, उधर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह नीरो के मानिंद चैन की बंसी बजा रहे हैं। कांग्रेस के युवराज ने कुछ दिन पहले गठबंधन की मजबूरियों पर प्रकाश डाला था। देशवासियों के जेहन में एक बात कौंध रही है कि बजट सत्र के ठीक पहले हुए इस फेरबदल और विस्तार के जरिए कांग्रेस क्या संदेश देना चाह रही है? संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की दूसरी पारी में जितने घपले घोटाले सामने आए हैं, वे अब तक का रिकार्ड कहे जा सकते हैं।  महंगाई आसमान छू रही है, आम आदमी मरा जा रहा है, प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि वे ज्यांतिषी नहीं हैं कि बता सकें कि आखिर कब महंगाई कम होगी। मनमोहन भूल जाते हैं कि वे भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री हैं। भारत के संविधान में भले ही महामहिम राष्ट्रपति को सर्वोच्च माना गया हो किन्तु ताकतवर तो प्रधानमंत्री ही होता है। अगर मनमोहन सिंह चाहें तो देश में मंहगाई, घपले घोटाले, भ्रष्टाचार पलक झपकते ही समाप्त हो सकता है, किन्तु इसके लिए मजबूत इच्छा शक्ति की आवश्यक्ता है, जिसकी कमी डॉ.मनमोहन सिंह में साफ तौर पर परिलक्षित हो रही है। मगर पता नहीं उनकी यह इच्छा कब होगी !



उन्नीस माह पुरानी मनमोहन सरकार में पिछले लगभग अठ्ठारह माह से ही फेरबदल की सुगबुगाहट चल रही थी। तीन नए मंत्रियों को शामिल करने, तीन को पदोन्नति देने और चंद मंत्रियों के विभागों में फेरबदल के अलावा मनमोहन सिंह ने आखिर किया क्या है? हमारी निजी राय में यह मनमोहनी डमरू है, जो देश की मौजूदा समस्याओं, घपलों, घोटालों, भ्रष्टाचार, नक्सलवाद, अलगाववाद, आतंकवाद की चिंघाड़ से देशवासियों का ध्यान बंटाने का असफल प्रयास कर रहा है। संप्रग दो में असफल और अक्षम मंत्रियों को बाहर का रास्ता न दिखाकर प्रधानमंत्री ने साबित कर दिया है कि वे दस जनपथ (श्रीमती सोनिया गांधी के सरकारी आवास) की कठपुतली से ज्यादा और कुछ नहीं हैं। आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे मंत्रियों को बाहर करके मनमोहन सिंह अपनी और सरकार की गिरती साख को बचाने की पहल कर सकते थे, वस्तुतः उन्होंने एसा किया नहीं है। आज देश प्रधानमंत्री से यह प्रश्न पूछ रहा है कि जो मंत्री अपने विभाग में अक्षम, अयोग्य या भ्रष्टाचार कर रहा था, वह दूसरे विभाग में जाकर भला कैसे ईमानदार, योग्य और सक्षम हो जाएगा? साथ ही साथ प्रधानमंत्री को जनता को बताना ही होगा कि आखिर वे कौन सी वजह हैं जिनके चलते मंत्रियों के विभागों को महज उन्नीस माह में ही बदल दिया गया है। क्या वजह है कि सीपीजोशी को ग्रामीण विकास से हटाकर भूतल परिवहन मंत्रालय दिया गया है?



दरअसल विपक्ष द्वारा शीत सत्र ठप्प किए जाने के बाद अब बजट सत्र में अपनी खाल बचाने के लिए मंत्रियों के विभागों को आपस में बदलकर देश के साथ ही साथ विपक्ष को संदेश देना चाह रही है कि अब भ्रष्ट मंत्रियों की नकेल कस दी गई है। वैसे कांग्रेस की नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री और युवराज राहुल गांधी की युवा तरूणाई को इस मंत्रीमण्डल में स्थान न देकर कांग्रेस ने एक संदेश और दिया है कि आने वाले फेरबदल में भ्रष्टों को स्थान नहीं दिया जाएगा, बजट सत्र के बाद जो फेरबदल होगा वह राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने का रोडमेप हो सकता है। इसी बीच इन तीन चार माहों में भ्रष्ट और नाकारा मंत्रियों को भी अपना चाल चलन सुधारने का मौका दिया जा रहा है, किन्तु मोटी खाल वाले मंत्रियों पर इसका असर शायद ही पड़ सके। इसी बीच मंहगाई पर काबू पाने के लिए भी कुछ प्रयास होने की उम्मीद दिख रही है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी की जो छवि है, वह भी बचाकर रखने के लिए कांग्रेस के प्रबंधकों ने देशी छोड़ विदेशी मीडिया को साधना आरंभ कर दिया है। कांग्रेस के प्रबंधक जानते हैं कि देश में मीडिया को साधना उतना आसान नहीं है, क्योंकि न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बाद अघोषित चौथे स्तंभ ‘‘मीडिया‘‘ के पथभ्रष्ट होने के उपरांत ‘ब्लाग‘ ने पांचवे स्तंभ के बतौर अपने आप को स्थापित करना आरंभ कर दिया है।



पटेल ने कांग्रेस अध्यक्ष को मशविरा दिया कि अगर मंत्रियों को हटाया गया तो वे पार्टी के अंदर असंतोष को हवा देंगे, तब बजट सत्र में टू जी स्पेक्ट्रम, विदेशों में जमा काला धन वापस लाना, नामों के खुलासे, महंगाई, सीवीसी की नियुक्ति आदि संवेदनशील मुद्दों पर पार्टीजनों को संभालना बड़ी चुनौती बनकर सामने आएगा। भले ही कांग्रेस प्रबंधकों ने यह सोचा होगा कि टीम मनमोहन से आक्रोश को शांत किया जा सकता है, किन्तु अभी भी पार्टी के अंदर लावा उबल ही रहा है।

 इक्कीसवीं सदी में सरकार में शामिल सहयोगी दलों द्वारा जब तब कांग्रेस या भाजपा की कालर पकड़कर उसे झझकोरा है। बिना रीढ़ के प्रधानमंत्रियों ने सहयोगी दलों के इस रवैए को भी बरदाश्त किया है। बहरहाल जो भी हो गठबंधन धर्म निभाते हुए कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही ने सत्ता की मलाई का रस्वादन अवश्य किया है पर गठबंधन के दो पाटों के बीच में पिसी तो आखिर देश की जनता ही है।

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