मेरे सीधे सवाल उन लोगों से हैं जो भ्रष्ट हैं या भ्रष्टाचार के हिमायती हैं या जो भ्रष्टाचार की गंगा में डूबकी लगाने की बात करते हैं। क्या वे उस दिन के लिए सुरक्षा कवच बना सकते हैं, जिस दिन-
1. उनका कोई अपना बीमार हो और उसे केवल इसलिए नहीं बचाया जा सके, क्योंकि उसे दी जाने वाली दवाएँ कमीशन खाने वाले भ्रष्टाचारियों द्वारा निर्धारित मानदंडों पर खरी नहीं उतरने के बाद भी अप्रूव्ड करदी गयी थी?
2. उनका कोई अपना बस में यात्रा करे और मारा जाये और उस बस की इस कारण दुर्घटना हुई हो, क्योंकि बस में लगाये गए पुर्जे कमीशन खाने वाले भ्रष्टाचारियों द्वारा निर्धारित मानदंडों पर खरे नहीं उतरने के बावजूद अप्रूव्ड कर दिए थे?
3. उनका कोई अपना खाना खाने जाये और उनके ही जैसे भ्रष्टाचारियों द्वारा खाद्य वस्तुओं में की गयी मिलावट के चलते, तडप-तडप कर अपनी जान दे दे?
4. उनका कोई अपना किसी दुर्घटना या किसी गम्भीर बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती हो और डॉक्टर बिना रिश्वत लिये उपचार करने या ऑपरेशन करने से साफ इनकार कर दे या विलम्ब कर दे और पीड़ित व्यक्ति बचाया नहीं जा सके?
भ्रष्टाचार से केवल सीधे तौर पर आहत लोग ही परेशान हों ऐसा नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार वो सांप है जो उसे पालने वालों को भी नहीं पहचानता। भ्र्रष्टाचार रूपी काला नाग कब किसको डस ले, इसका कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता! भ्रष्टाचार हर एक व्यक्ति के जीवन के लिये खतरा है। अत: हर व्यक्ति को इसे आज नहीं तो कल रोकने के लिये आगे आना ही होगा, तो फिर इसकी शुरुआत आज ही क्यों न की जाये?
इस बात में तनिक भी सन्देह नहीं कि यदि केन्द्र एवं राज्य सरकारें चाहें तो देश में व्याप्त 90 फीसदी भ्रष्टाचार स्वत: रुक सकता है! मैं फिर से दौहरा दूँ कि “हाँ यदि सरकारें चाहें तो देश में व्याप्त 90 फीसदी भ्रष्टाचार स्वत: रुक सकता है!” शेष 10 फीसदी भ्रष्टाचार के लिये दोषी लोगों को कठोर सजा के जरिये ठीक किया जा सकता है। इस प्रकार देश की सबसे बडी समस्याओं में से एक भ्रष्टाचार से निजात पायी जा सकती है।
मेरी उपरोक्त बात पढकर अनेक पाठकों को लगेगा कि यदि ऐसा होता तो भ्रष्टाचार कभी का रुक गया होता। इसलिये मैं फिर से जोर देकर कहना चाहता हूँ कि “हाँ यदि सरकारें चाहती तो अवश्य ही रुक गया होता, लेकिन असल समस्या यही है कि सरकारें चाहती ही नहीं!” सरकारें ऐसा चाहेंगी भी क्यों? विशेषकर तब, जबकि लोकतन्त्र के विकृत हो चुके भारतीय लोकतन्त्र के संसदीय स्वरूप में सरकारों के निर्माण की आधारशिला ही काले धन एवं भ्रष्टाचार से रखी जाती रही हैं। अर्थात् हम सभी जानते हैं कि सभी दलों द्वारा काले धन एवं भ्रष्टाचार के जरिये अर्जित धन से ही तो लोकतान्त्रिक चुनाव ल‹डे और जीते जाते हैं।
स्वयं मतदाता भी तो भ्रष्ट लोगों को वोट देने आगे रहता है, जिसका प्रमाण है-अनेक भ्रष्ट राजनेताओं के साथ-साथ अनेक पूर्व भ्रष्ट अफसरों को भी चुनावों में भारी बहुमत से जिताना, जबकि सभी जानते हैं की अधिकतर अफसर जीवनभर भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकी लगाते रहते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद ये ही अफसर हमारे जनप्रतिनिधि बनते जा रहे हैं। मैं ऐसे अनेक अफसरों के बारे में जानता हूँ जो 10 साल की नौकरी होते-होते एमपी-एमएलए बनने का ख्वाब देखना शुरू कर चुके हैं। साफ़ और सीधी सी बात है-कि ये चुनाव को जीतने लिये, शुरू से ही काला धन इकत्रित करना शुरू कर चुके हैं, जो भ्रष्टाचार के जरिये ही कमाया जा रहा है। फिर भी मतदाता इन्हें ही जितायेगा।
ऐसे हालत में सरकारें बिना किसी कारण के ये कैसे चाहेंगी कि भ्रष्टाचार रुके, विशेषकर तब; जबकि हम सभी जानते हैं कि भ्रष्टाचार, जो सभी राजनैतिक दलों की ऑक्सीजन है। यदि सरकारों द्वारा भ्रष्टाचार को ही समाप्त कर दिया गया तो इन राजनैतिक दलों का तो अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा! परिणाम सामने है : भ्रष्टाचार देशभर में हर क्षेत्र में बेलगाम दौ‹ड रहा है और केवल इतना ही नहीं, बल्कि हम में से अधिकतर लोग इस अंधी दौ‹ड में शामिल होने को बेताब हैं।
‘‘भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून” बनाया जावे।
‘‘भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून” बनवाने के लिए उन लोगों को आगे आना होगा जो-
भ्रष्टाचार से परेशान हैं, भ्रष्टाचार से पीड़ित हैं,
भ्रष्टाचार से दुखी हैं,
भ्रष्टाचार ने जिनका जीवन छीन लिया,
भ्रष्टाचार ने जिनके सपने छीन लिये और
जो इसके खिलाफ संघर्षरत हैं।
ललित सिंह (अखिल भारतीय नौजवान सभा).