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Saturday, November 27, 2010

रिश्वतखोरी तथा भ्रष्टाचार का पर्याय बनती भारतीय राजनीति


हमारे देश में विशेषकर राजनैतिक व प्रशासनिक हल्कों में रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार हरामंखोरी तथा अपराधीकरण जैसी विसंगतियां कोई नई बात नहीं हैं। देश की स्वतंत्रता के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय से ही सरकारी खरीद में घोटालों की खबरें आनी शुरु हो गई थीं। स्वतंत्रता के 63 वर्ष बीत जाने के बाद अब यही विसंगतियां अपना एक ऐसा विराट रूप धारण कर चुकी हैं जिसने पूरे देश के विकास, यहां की अर्थव्यवस्था तथा अमीरों व गरीबों के मध्य के अंतर तक को प्रस्‍तावित कर दिया है। जरा कल्पना कीजिए कि जब देश के एक सबसे प्रतिष्ठित औद्योगिक घराने टाटा समूह का प्रमुख रतन टाटा 12 वर्ष बीत जाने के बाद यह कहता सुनाई दे कि मुझसे 15 करोड़ रुपये की रिश्वत एक केंद्रीय मंत्री द्वारा इसलिए मांगी गई थी क्योंकि टाटा समूह सिंगापुर एयरलाईंस के साथ मिलकर देश में एक निजी विमानन कंपनी स्थापित करना चाहता था। और इस नई कंपनी के लाईसेंस देने के लिए 15 करोड़ रूपये मांगे गए। परिणाम स्वरूप टाटा ने पैसे नहीं दिए और प्रस्तावित निजी विमानन कंपनी नहीं शुरु हो सकी। यदि उस समय टाटा समूह ने नई विमानन कंपनी बनाकर कारोबार शुरु कर दिया होता तो इन 12 वर्षों के दौरान देश को अब तक कितना आर्थिक लाभ पहुंचता तथा कितने लोग राोगार पा चुके होते। एक अन्य उद्योगपति राहुल बजाज ने भी रतन टाटा से रिश्वत मांगे जाने की खबर की पुष्टि की है। और यह स्वीकार किया है कि तमाम औद्योगिक घराने अपना काम चलाने के लिए रिश्वत देते रहते हैं।
इन दिनों देश में जिन प्रमुख घोटालों को लेकर हंगामा बरपा है उनमें राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला तथा इन सभी घोटालों से ऊपर यहां तक कि देश का अब तक का सबसे बड़ा कहा जाने वाला स्पैक्ट्रम घोटाला शामिल है। राष्ट्रमंडल खेल घोटाले की चपेट में आकर जहां सुरेश कलमाड़ी को उनके पद से हटाया जा चुका है वहीं इन खेलों से जुड़े क्वींस बेटन रिले कार्यक्रम में हुई आर्थिक अनियमितताओं के सिलसिले में दो उच्च अधिकारियों को सी बी आई गिरं तार भी कर चुकी है। उधर आदर्श सोसायटी घोटाले की चपेट में आए महाराष्ट्र के मु यमंत्री अशोक चव्हाण को हटाकर उनकी जगह पृथ्वीराज चौहान को महाराष्ट्र का नया मु यमंत्री बनाया जा चुका है। गोया भ्रष्टाचार और घोटाले ने एक मु यमंत्री की कुर्सी तक को निगल डाला। और अब स्पैक्ट्रम महाघोटाले के मुखिया समझे जाने वाले संचार मंत्री तथा डी एम के नेता ए राजा को बड़ी मुश्किलों के बाद उनके पद से हटाया जा चुका है। परंतु अब स्पैक्ट्रम घोटाले की आंच प्रधानमंत्री कार्यालय तक भी पहुंचने लगी है।

कहने को तो विपक्षी पार्टियां विशेषकर भाजपा नेता यह कहते दिखाई दे रहे हैं कि भ्रष्टाचार के किसी मामले में पहली बार प्रधानमंत्री कार्यालय पर भी उंगली उठी है। परंतु यह आरोप सही नहीं है। याद कीजिए बिहार में राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के दौरान भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग में कार्यरत परियोजना निदेशक सत्येंद्र दूबे नामक एक ईमानदार व होनहार इंजीनियर की भ्रष्टाचारियों द्वारा 27 नवंबर 2003 को दिनदहाड़े गोली मार कर की गई नृशंस हत्या। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में दूबे ने सड़क निर्माण में हो रहे भ्रष्टाचार व धांधली संबंधी विस्तृत जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी थी। साथ ही दूबे ने पी एम ओ को यह भी सचेत किया था कि यदि उसके द्वारा पी एम ओ को दी गई जानकारी का भ्रष्टाचारियों को पता चला तो उसकी हत्या कर दी जाएगी, अत: इसे गुप्त रखते हुए कार्रवाई की जाए। और पी एम ओ में इस पत्र की प्राप्ति के बाद भ्रष्टाचारियों के विरुध्द कार्रवाई तो नहीं हुई हां, पी एम ओ को पत्र प्राप्त होने के चंद ही दिनों बाद उस ईमानदार, राष्ट्रभक्त अधिकारी सत्येंद्र दूबे की हत्या जरूर हो गई। स्वर्गीय सत्येंद्र दूबे के परिजन आज तक इस प्रश्न का ऊत्तर नहीं पा सके कि आखिर चेतावनी के बावजूद पी एम ओ से सत्येंद्र दूबे के पत्र की जानकारी भ्रष्टाचारी हत्यारों को कैसे और क्यों मिली?

बहरहाल, टैक्स चोरी, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी तथा अन्य तमाम गलत तरींकों से कमाई गई नेताओं, अधिकारियों, भ्रष्टाचारियों तथा निजी कंपनियों के मालिकों की पूंजी अबइतनी अधिक बढ़ गई है कि अमेरिका में वाशिंटन स्थित एक संस्था ग्लोबल फाईनेंशियल इंटिग्रिटी को इस विषय पर अपने कुछ आंकड़े जारी करने पड़े हैं। इस संस्था का आंकलन है कि भारत वर्ष को आजादी से लेकर अब तक कम से कम 450 अरब डॉलर का नुंकसान हुआ है। यानि लगभग 23 लाख करोड़ रुपये से अधिक का घाटा। यदि यह धन हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद का हिस्सा होता अर्थात् यह रंकम देश की कानूनी पूंजी होती तो इसके जरिए पूरे देश की स्वास्थय, शिक्षा व बिजली-पानी जैसी सभी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता था। तमाम अर्थशास्त्रियों का यह विश्वास है कि यदि रिश्वत, भ्रष्टाचार तथा हरामंखोरी जैसी दीमक हमारे देश के नेताओं व अधिकारियों के रूप में देश को खा न रही होती तो नि:संदेह भारतवर्ष अब तक चीन को भी पीछे छोड़ चुका होता। परंतु धन लोभियों द्वारा टैक्स देने से बचने के लिए, गलत तरींकों से कमाई गई दौलत को छुपा कर रखने के लिए, घूसंखोरी, भ्रष्टाचार, अपराध तथा अन्य गैर कानूनी धंधों पर पर्दा डाले रखने के लिए इस दौलत को विदेशों में भेज दिया गया। भ्रष्टाचार की इंतेहा केवल यहीं समाप्त नहीं हुई है। दुर्भाग्य तो यह है कि देश की राजनीति का अधिकांश भाग अर्थात् अधिकांश राजनैतिक दलों के आधिकांश नेता इस समय भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। और इस पर तमाशा यह कि एक भ्रष्टाचारी दूसरे भ्रष्टाचारी को यह कहता दिखाई दे रहा है कि तुम भ्रष्टाचारी हो, तुम्‍हारी पार्टी का अमुक नेता भ्रष्टाचारी है परंतु हम नहीं हैं, क्योंकि हम तो सांस्कृतिक राष्ट्रवादी हैं।

और भ्रष्टाचार संबंधी ऐसी ही बहस में गत् सप्ताह संसद की कार्रवाई मात्र पहले दिन ही चल सकी। शेष पूरा सप्ताह घपले, घोटाले व रिश्वतखोरी जैसे मुद्दों पर हुए शोर-शराबे की भेंट चढ़ गया। अब जरा यह भी गौर कीजिए कि हमारे देश की आम जनता की गाढ़ी कमाई का लगभग 8 करोड़ रुपया प्रतिदिन संसद की कार्रवाई पर खर्च किया जाता है। कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि जनता का पैसा पहले तो भ्रष्टाचारियों की भेंट चढ़े, फिर जनता ही इसके नकारात्मक परिणामों अर्थात् प्रगति व विकास की कमियों को भुगते और बाद में संसद में इसी विषय पर हो रहे शोर-शराबे पर भी अपने ही पैसे खर्च करे? आज देश के तमाम क्षेत्रों में यह खबरें सुनाई देती हैं कि कहीं सड़कें नहीं हैं तो कहीं स्कूल व अस्पताल नहीं हैं। कहीं प्रत्येक वर्ष बाढ़ का प्रकोप सिंर्फ इसलिए रहता है कि वहां ऊंचे बांध नहीं बन सके। भुखमरी के चलते गरीबों के मरने या आत्महत्या करने के समाचार भी अक्सर सुनाई देते हैं। दूसरी ओर खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरी, नकली दवाईयों का बाजार में धड़ल्ले से बिकना, घटिया सड़कों का निर्माण होना, कमजोर सरकारी इमारतों का बनना आदि गोरखधंधा बे रोक टोक चल रहा है। इन सभी कारणों के चलते तमाम लोगों की मौतें भी हो जाती हैं।

उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े राय से कुछ ऐसे समाचार मात्र स्वास्‍थ्‍य विभाग से प्राप्त हो रहे हें जिन्हें सुनकर आम आदमी केवल अंफसोस ही कर सकता है। खबर है कि स्वास्थय विभाग के अधिकारियों द्वारा प्रदेश को मलेरिया उन्मूलन के लिए भेजा गया पूरा का पूरा बजट ही चट कर दिया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा केंद्र सरकार के सहयोग से इस प्रदेश में बड़े पैमाने पर पल्स पोलियो अभियान,शिशु मातृ सुरक्षा अभियान, कुष्ठ निवारण कार्यक्रम,जननी सुरक्षा कार्यक्रम, क्षय रोग उपचार, अंधता निवारण तथा टीकाकरण जैसी स्वास्थय संबंधी योजनाएं चलाने के निर्देश दिए गए हैं। जाहिर है इसके लिए प्रदेश सरकार को भारी-भरकम बजट भी दिया गया है। परंतु स्वास्थय विभाग उक्त कार्यक्रमों के संचालन के बजाए इस बजट को आपस में बांट खाने में यादा विश्वास रखता है। गत् कुछ वर्षों में स्वास्थय विभाग से जुड़े ठेकों को लेकर कई लोगों की हत्याएं भी हो चुकी हैं।

अब तो यह भी तय समझा जाना चाहिए कि इन भ्रष्टाचारियों ने जिनमें नेता, अधिकारी, इनके चमचे, इनके रिश्तेदार आदि सभी शामिल हैं के विरुद्ध यदि किसी ईमानदार अधिकारी, पत्रकार अथवा सामाजिक कार्यकर्ता ने उंगली उठाई तो उसे भी मंजुनाथन, सत्येंद्र दूबे तथा अमित जेठवा आदि राष्ट्रभक्तों की ही तरह अपनी जान गंवानी पड़ सकती है। जिहाजा अब यदि देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना है तो सर्वप्रथम देश की राजनीति से भ्रष्ट राजनीतिज्ञों का संफाया करने की जरूरत है। जनता तथा आम मतदाता यह बहुत अच्छी तरह जानता है कि उसके क्षेत्र की पंचायत से लेकर संसद तक का नुमाईंदा राजनीति के क्षेत्र में अपनी सक्रियता अथवा अपने निर्वाचन से पूर्व क्या आर्थिक हैसियत रखता था और अब कुछ ही समय में अथवा कुछ ही वर्षों में वह आर्थिक रूप से कितना संपन्न हो चुका है। मंहगाई के इस दौर में जबकि एक व्यक्ति का रोटी खाना व साधारण तरींके से उसका परिवार चलाना दूभर हो रहा है ऐसे में जनता के समक्ष चुनाव के समय हाथ जोड़ने वाला तथा स्वयं को समाजसेवी बताने का ढोंग करने वाला कोई राजनैतिक कार्यकर्ता यदि आए दिन अपनी संपत्ति बढ़ाता ही जा रहा है अथवा उसका रहन-सहन असाधारण होता जा रहा है तो जनता को स्वयं समझ लेना चाहिए कि अमुक व्यक्ति,समाजसेवी या नेता नहीं बल्कि हमारे देश में लगी भ्रष्टाचार रूपी दीमकों के झुंड का ही एक प्रमुख हिस्सा है। और ऐसी दीमकों को अपने मतों द्वारा मसल देने में ही जनता, समाज तथा देश का कल्याण निहित है।

 भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाये

ललित सिंह (अखिल भारतीय नौजवान सभा)

Thursday, November 25, 2010

आपने पुलिस के लिये क्या किया है?

मैं जहाँ कहीं भी लोगों के बीच जाता हूँ और भ्रष्टाचार, अत्याचार या किसी भी प्रकार की नाइंसाफी की बात करता हूँ, तो सबसे पहले सभी का एक ही सवाल होता है कि हमारे देश की पुलिस तो किसी की सुनती ही नहीं। पुलिस इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि अब तो पुलिस से किसी प्रकार के न्याय की या संरक्षण की आशा करना ही बेकार है। और भी बहुत सारी बातें कही जाती हैं।



मैं यह नहीं कहता कि लोगों की शिकायतें गलत हैं या गैर-बाजिब हैं! मेरा यह भी कहना नहीं है कि पुलिस भ्रष्ट नहीं है, लेकिन सवाल यह है कि हम में से जो लोग इस प्रकार की बातें करते हैं, वे कितने ईमानदार हैं? उनमें से ऐसे कितने हैं, जिन्होने कभी जून के महिने में चौराहे पर खडे यातायात हवलदार या सिवाही से पूछा हो कि भाई तबियत तो ठीक है ना, पानी पिया है या नहीं?


हम से कितने हैं, जिन्होंने कभी थाने में जाकर थाना प्रभारी को कहा हो कि मैं आप लोगों की क्या मदद कर सकता हूँ? आप कहेंगे कि पुलिस को हमारी मदद की क्या जरूरत है? पुलिसवाला भी एक इंसान ही है। जब हम समाज में जबरदस्त हुडदंग मचाते हैं, तो पुलिसवालों की लगातर कई-कई दिन की ड्यूटियाँ लगती हैं, उन्हें नहाने और कपडे बदलने तक की फुर्सत नहीं मिलती है। ऐसे में उनके परिवार के लोगों की जरूरतें कैसे पूरी हो रही होती हैं, कभी हम इस बात पर विचार करते हैं? ऐसे समय में हमारा यह दायित्व नहीं बनता है कि हम उनके परिवार को भी संभालें? उनके बच्चे को, अपने बच्चे के साथ-साथ स्कूल तक ले जाने और वापस घर तक छोडने की जिम्मेदारी निभाकर देखें?


यात्रा करते समय गर्मी के मौसम में चौराहे पर खडे पुलिसवाले को अपने पास उपलब्ध ठण्डे पानी में से गाडी रोककर पानी पिलाकर देखें? पुलिसवालों के आसपास जाकर पूछें कि उन्हें अपने गाँव, अपने माता-पिता के पास गये कितना समय हो गया है? पुलिस वालों से पूछें कि दंगों में या आतंक/नक्सल घटनाओं में लोगों की जान बचाते वक्त मारे गये पुलिसवालों के बच्चों के जीवन के लिये हम क्या कर सकते हैं? केवल पुलिस को हिकारत से देखने भर से कुछ नहीं हो सकता? हमेशा ही नकारत्मक सोच रखना ही दूसरों को नकारात्मक बनाता है।


हम तो किसी कानून का या नियम का या व्यवस्था का पालन नहीं करें और चाहें कि देश की पुलिस सारे कानूनों का पालन करे, लेकिन यदि हम कानून का उल्लंघन करते हुए भी पकडे जायें तो पुलिस हमें कुछ नहीं कहे? यह दौहरा चरित्र है, हमारा अपने आपके बारे में और अपने देश की पुलिस के बारे में।


कई वर्ष पहले की बात है, मुझे सूचना मिली कि मेरे एक परिचित का एक्सीडेण्ट हो गया है। मैं तेजी से गाडी चलाता हुआ जा रहा था, मुझे इतना तनाव हो गया था कि मैं सिग्नल भी नहीं देख पाया और लाल बत्ती में ही घुस गया। स्वाभाविक रूप से पुलिस वाले ने रोका, तब जाकर मेरी तन्द्रा टूटी।


मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। मैंने पुलिसवाले के एक शब्द भी बोलने से पहले पर्स निकाला और कहा भाई जल्दी से बताओ कितने रुपये देने होंगे। पुलिसवाला आश्चर्यचकित होकर मुझे देखने लगा और बोला आप कौन हैं? मैंने अपना लाईसेंस दिखाया। उसने जानना चाहा कि “आप इतनी आसानी से जुर्माना क्यों भर रहे हैं।” मैंने कहा गलती की है तो जुर्माना तो भरना ही होगा।


अन्त में सारी बात जानने के बाद उन्होनें मुझसे जुर्माना तो लिया ही नहीं, साथ ही साथ कहा कि आप तनाव में हैं। अपनी गाडी यहीं रख दें और उन्होनें मेरे साथ अपने एक जवान को पुलिस की गाडी लेकर मेरे साथ अस्पताल तक भेजा। ताकि रास्ते में मेरे साथ कोई दुर्घटना नहीं हो जाये?


हमेशा याद रखें कि पुलिस की वर्दी में भी हम जैसे ही इंसान होते हैं, आप उनको सच्ची बात बतायें, उनमें रुचि लें और उनको अपने बीच का इंसान समझें। उन्हें स्नेह और सम्मान दें, फिर आप देखें कि आपके साथ कैसा बर्ताव किया जाता है। आगे से जब भी कोई पुलिस के बारे में नकारात्मक टिप्पणी करे तो आप उससे सीधा सवाल करें कि-”आपने पुलिस के लिये क्या किया है?”

Tuesday, November 23, 2010

देश से बड़ी है सोनिया!

जब से कामनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार का खुलासा होना शुरू हुआ है। देश का हर व्यक्ति सहम सा गया है। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा है कि उनकी खून-पसीने की कमाई को कलमाड़ी एंड कंपनी ने कैसे अपनी तिजोरियों में बंद करने का प्लान बनाया। आज देश का बच्चा-बच्चा जानने लगा है कि कामनवेल्थ गेम्स में किस तरह का भ्रष्टाचार हो रहा है। उसके बावजूद सुरेश कलमाड़ी ने यह कहकर देश को शर्मसार कर दिया कि यदि सोनिया गांधी चाहेंगी तभी वे इस्तीफा देंगे, अन्यथा वे यूं ही देश के 110 करोड़ लोगों का खून चूसते रहेंगे। उनका यह ऐलान देश को हिला देने वाला है। उनका इशारा साफ है कि देश से यादा महत्वपूर्ण सोनिया गांधी है। जब तक सोनिया गांधी का साथ है, मीडिया हो या विपक्ष कलमाड़ी का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।

इस मुद्दे पर रोज हंगामा हो रहा है, लेकिन न तो प्रधानमंत्री को इसकी चिंता है और न ही सोनिया गांधी को कोई फर्क पड़ता है। यही वजह है कि आयोजन समिति से जुड़े चार पदाधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाकर कलमाड़ी को क्लीन चिट देने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। कलमाड़ी कोई छोटा-मोटा आदमी नहीं है, बल्कि वे पश्चिम भारत में मारूति और बजाज वाहनों की सबसे बड़ी एजेंसी के मालिक हैं। वे खेल संघों को उद्योग की तरह चलाते हैं।

कामनवेल्थ गेम्स कलमाड़ी एंड कंपनी के लिए कमाई का एक बढ़िया जरिया बन गया था। आयोजन समिति के कोषाध्यक्ष इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, जिन्होंने टेनिस स्टेडियम में सिंथेटिक कोर्ट बिछाने का कार्य अपने ही पुत्र की कंपनी को दे दिया था। उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते इस्तीफा देना पड़ा।

वो तो भला हो मानसूनी बारिश का, जिसकी वजह से स्टेडियम का छत टपकने लगा और शुरू हुआ भ्रष्टाचार और घोटालों के राजफाश होने का सिलसिला। दिल्ली में यदि जमकर बारिश नहीं होती, तो कामनवेल्थ गेम्स से जुड़े भ्रष्ट लोगों की पोल ही नहीं खुल पाती। केंद्रीय सत्ताधीशों के संरक्षण में पल रहे भ्रष्टाचारियों का पेट इतना बड़ा है कि अरबों रूपए डकार जाने के बाद भी उनके मुंह उफ तक नहीं निकलता। अधिकांश खेल संघों में अभी भी सालों से राजनीतिज्ञ काबिज हैं। कलमाड़ी खुद कांग्रेसी नेता हैं और पिछले 20 सालों से एथलेटिक फेडरेशन पर काबिज हैं वहीं 14 सालों से ओलिपिंक एसोसिएशन के अध्यक्ष पद पर कुंडली मारकर बैठे हुए हैं। इस देश में जब हर पांच साल में जनप्रतिनधि बदले जाने का नियम है। तो फिर उन्हें इतने सालों से आम आदमी का खून चूसने के लिए कैसे छोड़ दिया गया,यह समझ से परे है।

मुझे लगता है कि इस मामले में केंद्र सरकार भी उतनी  ही दोषी है, जितना कलमाड़ी एंड कंपनी। यदि ऐसा नहीं होता तो देश में खेलों के देखरेख के लिए सांसदों की उच्चस्तरीय समिति बनाने की मांग केंद्र सरकार नहीं ठुकराती और न ही कलमाड़ी गरजकर ये कह पाते कि उन्हें सोनिया गांधी या प्रधानमंत्री कहेंगे तभी इस्तीफा देंगे। मेरा मानना है कि अब वक्त आ गया है कि जब भ्रष्टाचार को भी हत्या के बराबर या उससे बड़ा अपराध मानकर दोषियों को फांसी की सजा देने का प्रावधान करना चाहिए। भ्रष्टाचार को हमारे देश में हल्के से लिया जाता है। इसकी सबसे बड़ी वजह भ्रष्टाचारियों के लिए कोई ठोस कानून का न होना है। जब एक व्यक्ति की हत्या करने पर फांसी की सजा का प्रावधान है तो कई लोगों का जीवन बरबाद करने वाले भ्रष्टाचारियों को महज कुछ सालों की सजा क्यों। यदि भ्रष्टाचार की वजह से कलमाड़ी के चार साथियों को बाहर का रास्ता दिखाया गया है तो सोनिया गांधी या प्रधानमंत्री को चाहिए कि वे इन भ्रष्टाचारियों के लीडर को न सिर्फ ओलंपिक संघ से हटाएं, बल्कि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच भी कराएं, ताकि 110 करोड़ भारतीयों के साथ न्याय हो सके।

भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठायें
ललित सिंह (अखिल भारतीय नौजवान सभा)

Sunday, November 21, 2010

Corrupt India...?


मेरे सीधे सवाल उन लोगों से हैं जो भ्रष्ट हैं या भ्रष्टाचार के हिमायती हैं या जो भ्रष्टाचार की गंगा में डूबकी लगाने की बात करते हैं। क्या वे उस दिन के लिए सुरक्षा कवच बना सकते हैं, जिस दिन-



1. उनका कोई अपना बीमार हो और उसे केवल इसलिए नहीं बचाया जा सके, क्योंकि उसे दी जाने वाली दवाएँ कमीशन खाने वाले भ्रष्टाचारियों द्वारा निर्धारित मानदंडों पर खरी नहीं उतरने के बाद भी अप्रूव्ड करदी गयी थी?


2. उनका कोई अपना बस में यात्रा करे और मारा जाये और उस बस की इस कारण दुर्घटना हुई हो, क्योंकि बस में लगाये गए पुर्जे कमीशन खाने वाले भ्रष्टाचारियों द्वारा निर्धारित मानदंडों पर खरे नहीं उतरने के बावजूद अप्रूव्ड कर दिए थे?


3. उनका कोई अपना खाना खाने जाये और उनके ही जैसे भ्रष्टाचारियों द्वारा खाद्य वस्तुओं में की गयी मिलावट के चलते, तडप-तडप कर अपनी जान दे दे?


4. उनका कोई अपना किसी दुर्घटना या किसी गम्भीर बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती हो और डॉक्टर बिना रिश्वत लिये उपचार करने या ऑपरेशन करने से साफ इनकार कर दे या विलम्ब कर दे और पीड़ित व्यक्ति बचाया नहीं जा सके?




भ्रष्टाचार से केवल सीधे तौर पर आहत लोग ही परेशान हों ऐसा नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार वो सांप है जो उसे पालने वालों को भी नहीं पहचानता। भ्र्रष्टाचार रूपी काला नाग कब किसको डस ले, इसका कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता! भ्रष्टाचार हर एक व्यक्ति के जीवन के लिये खतरा है। अत: हर व्यक्ति को इसे आज नहीं तो कल रोकने के लिये आगे आना ही होगा, तो फिर इसकी शुरुआत आज ही क्यों न की जाये?

इस बात में तनिक भी सन्देह नहीं कि यदि केन्द्र एवं राज्य सरकारें चाहें तो देश में व्याप्त 90 फीसदी भ्रष्टाचार स्वत: रुक सकता है! मैं फिर से दौहरा दूँ कि “हाँ यदि सरकारें चाहें तो देश में व्याप्त 90 फीसदी भ्रष्टाचार स्वत: रुक सकता है!” शेष 10 फीसदी भ्रष्टाचार के लिये दोषी लोगों को कठोर सजा के जरिये ठीक किया जा सकता है। इस प्रकार देश की सबसे बडी समस्याओं में से एक भ्रष्टाचार से निजात पायी जा सकती है।

मेरी उपरोक्त बात पढकर अनेक पाठकों को लगेगा कि यदि ऐसा होता तो भ्रष्टाचार कभी का रुक गया होता। इसलिये मैं फिर से जोर देकर कहना चाहता हूँ कि “हाँ यदि सरकारें चाहती तो अवश्य ही रुक गया होता, लेकिन असल समस्या यही है कि सरकारें चाहती ही नहीं!” सरकारें ऐसा चाहेंगी भी क्यों? विशेषकर तब, जबकि लोकतन्त्र के विकृत हो चुके भारतीय लोकतन्त्र के संसदीय स्वरूप में सरकारों के निर्माण की आधारशिला ही काले धन एवं भ्रष्टाचार से रखी जाती रही हैं। अर्थात् हम सभी जानते हैं कि सभी दलों द्वारा काले धन एवं भ्रष्टाचार के जरिये अर्जित धन से ही तो लोकतान्त्रिक चुनाव ल‹डे और जीते जाते हैं।

स्वयं मतदाता भी तो भ्रष्ट लोगों को वोट देने आगे रहता है, जिसका प्रमाण है-अनेक भ्रष्ट राजनेताओं के साथ-साथ अनेक पूर्व भ्रष्ट अफसरों को भी चुनावों में भारी बहुमत से जिताना, जबकि सभी जानते हैं की अधिकतर अफसर जीवनभर भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकी लगाते रहते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद ये ही अफसर हमारे जनप्रतिनिधि बनते जा रहे हैं। मैं ऐसे अनेक अफसरों के बारे में जानता हूँ जो 10 साल की नौकरी होते-होते एमपी-एमएलए बनने का ख्वाब देखना शुरू कर चुके हैं। साफ़ और सीधी सी बात है-कि ये चुनाव को जीतने लिये, शुरू से ही काला धन इकत्रित करना शुरू कर चुके हैं, जो भ्रष्टाचार के जरिये ही कमाया जा रहा है। फिर भी मतदाता इन्हें ही जितायेगा।

ऐसे हालत में सरकारें बिना किसी कारण के ये कैसे चाहेंगी कि भ्रष्टाचार रुके, विशेषकर तब; जबकि हम सभी जानते हैं कि भ्रष्टाचार, जो सभी राजनैतिक दलों की ऑक्सीजन है। यदि सरकारों द्वारा भ्रष्टाचार को ही समाप्त कर दिया गया तो इन राजनैतिक दलों का तो अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा! परिणाम सामने है : भ्रष्टाचार देशभर में हर क्षेत्र में बेलगाम दौ‹ड रहा है और केवल इतना ही नहीं, बल्कि हम में से अधिकतर लोग इस अंधी दौ‹ड में शामिल होने को बेताब हैं।

‘‘भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून” बनाया जावे।

‘‘भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून” बनवाने के लिए उन लोगों को आगे आना होगा जो-

भ्रष्टाचार से परेशान हैं, भ्रष्टाचार से पीड़ित हैं,

भ्रष्टाचार से दुखी हैं,

भ्रष्टाचार ने जिनका जीवन छीन लिया,

भ्रष्टाचार ने जिनके सपने छीन लिये और

जो इसके खिलाफ संघर्षरत हैं।

ललित सिंह  (अखिल भारतीय नौजवान सभा).

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